April 20, 2016

बारिश भी कभी ..




बारिश भी कभी तूफ़ान थी..
बादलों ने रखी थाम थी..

ये सोच कर ख़ुश हो जाती हूँ..
 मैं भी कभी इंसान थी ..

मौक़ापरस्ती बेतहाशा हँसती रही ..
ये देख कर उम्र बहुत परेशान थी..

घोंसले का सिकंदर क्यूँ सोचता है ..
ज़िंदगी से ज़्यादा जी लेने की उड़ान थी..

जिसने फेंके दूसरों के घर में पत्थर..
उसकी ख़ुद की बेटी जवान थी..

दर बदर दाना ढूँढती है जो चिड़िया ..
कभी मेरी खिड़की की ख़ास मेहमान थी.. 


2 comments:

शिखा said...

वाह!क्या बात

Archana Aggarwal said...

अत्यंत भावनापूर्ण